Saturday, March 2, 2013

My Poetries : सामाजिक मंथन

सामाजिक मंथन 

ये विशविए समाज , किस दौर पर है ,
ऐसा लगता है  कोई मंथन है !
एक समाज  का दुसरे समाज से मिलन ,
क्या ये एक शारीरिक संबंद है समाजो का !!


एक समाज की खुबियाँ दूसरा समाज सीखता है ,
और  दूसरा पहले की !
भारितीय 'spirituality'  का पाश्चात्य विज्ञान से मिलन,
और मिलन पाश्चात्य का भारितीय 'योग' से !!


ये जो जिंदाबाद-जिंदाबाद करते हैं ,
हैसियत क्या है , इनकी ??
कर्महीन बत्थोद-बडबोल ये ,
इनकी तो बोल में भी मधुरता नहीं !!


ये   सियासी कर्महीन लोग ,
नासूर - ऐ - समाज , आदम -खोरी के सरदार !
धुर्रे-ऐ-बर्बादी के ये  मालिक ,
विनाश इनका  एक नज़र-ऐ-हंगामा बनने को बेक़रार !!


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