हिन्दोस्तां - Inspired by Iqbal
ऐ हिन्द-ऐ-मोहाब्बत , क्या कहूं तुझे
दिलो में सजाया तुम्हे !
प्यास बुझती नहीं इकरार को ,
चाहूं क्या तुझसे और !?
देखा तुझे और तेरे बन्दों को ,
सुना और समझा उन्हे ,
क्या अच्छा है और क्या बुरा ,
क्या ऊपर और क्या नीचे,
क्या महाराष्ट्र और क्या बिहार ,
क्या कश्मीर और क्या 'कुमारी ',
तेरी पावनता जो यहाँ है वो वहां भी !!
एक मैं ही जो आप पहचान न पाया ,
डोडत फिरू इधर - उधर ,
सोचा - ये दोस्त है , या वो दुश्मन !
अहा ! थोडा थमने की देर थी ,
फिर जाना .. ये सारे ही तो है अपने !!
ऐ दिल-ऐ-गुलज़ार , चमन-ऐ-खुशबू ,
क्या मेरी बात भी मतलब रखती है ?
क्या ये जंगल है या गुलिस्तां ,
क्या मेरी भी हस्ती होती है ??
क्या इस समय की बर्फीली सर्दी ,
क्या उस समय की तप-तपाती लू ।
थिठुरता , तपता ये सरीर ,
क्या अदा है तुम्हारी फिज़ावो में ॥
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