Saturday, March 2, 2013

My Poetries : सामाजिक मंथन

सामाजिक मंथन 

ये विशविए समाज , किस दौर पर है ,
ऐसा लगता है  कोई मंथन है !
एक समाज  का दुसरे समाज से मिलन ,
क्या ये एक शारीरिक संबंद है समाजो का !!


एक समाज की खुबियाँ दूसरा समाज सीखता है ,
और  दूसरा पहले की !
भारितीय 'spirituality'  का पाश्चात्य विज्ञान से मिलन,
और मिलन पाश्चात्य का भारितीय 'योग' से !!


ये जो जिंदाबाद-जिंदाबाद करते हैं ,
हैसियत क्या है , इनकी ??
कर्महीन बत्थोद-बडबोल ये ,
इनकी तो बोल में भी मधुरता नहीं !!


ये   सियासी कर्महीन लोग ,
नासूर - ऐ - समाज , आदम -खोरी के सरदार !
धुर्रे-ऐ-बर्बादी के ये  मालिक ,
विनाश इनका  एक नज़र-ऐ-हंगामा बनने को बेक़रार !!


My Poetries : हिन्दोस्तां !

हिन्दोस्तां - Inspired by Iqbal


ऐ हिन्द-ऐ-मोहाब्बत , क्या कहूं तुझे

दिलो में सजाया तुम्हे !
प्यास बुझती  नहीं इकरार को ,
चाहूं क्या तुझसे और !?


देखा तुझे और तेरे बन्दों  को ,
सुना और समझा उन्हे ,
क्या अच्छा है और क्या बुरा ,
क्या ऊपर और क्या नीचे,
क्या महाराष्ट्र और क्या बिहार ,
क्या कश्मीर और क्या 'कुमारी ',
तेरी पावनता जो यहाँ है वो वहां भी !!


एक मैं ही जो आप पहचान  न पाया ,
डोडत फिरू इधर - उधर ,
सोचा - ये दोस्त है , या वो दुश्मन !
अहा !  थोडा थमने की देर  थी ,
फिर जाना .. ये सारे ही तो है अपने !!


ऐ दिल-ऐ-गुलज़ार , चमन-ऐ-खुशबू ,

क्या मेरी बात भी मतलब रखती है ?
क्या ये  जंगल है या गुलिस्तां ,
क्या मेरी भी हस्ती होती है ??


क्या इस  समय की बर्फीली सर्दी ,

क्या उस समय की तप-तपाती लू ।
थिठुरता , तपता  ये सरीर ,
क्या अदा है तुम्हारी फिज़ावो में ॥